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कविता

कभी फुर्सत मिली तो

रेखा चमोली


जाओ जी जाओ
कहीं और सजाना
अपने शहद भरे शब्दों की दुकान
तुम्हारी मिठास पर भारी हैं
रोजमर्रा की खीझ व कड़ुवाहटें
लो जी, अब कहने लगे
जिंदगी जीने की कला सीखो
परेशानियों से लड़ना सीखो
अरे लड़ते-लड़ते ही तो बच पाई हूँ इतनी
कि अब भी तुम्हारी नजर
टूटती जर्जर दीवारों पर उगी
घास की मुट्ठी भर हरियाली पर जा टिकी है

बड़े प्यार-व्यार की बातें करते हो
आओ जरा धुलवा दो मेरे साथ कपड़े-बर्तन
घर भर का झाड़ू-पोंछा करने में मदद कर दो
हाथ-पैर धुलवाकर तेल ही लगा दो
मेरे बच्चों के हाथ-पैरों पर
चलो छोड़ो एक कप चाय ही बना कर पिला दो

क्या कहा?
ये सब जरूर कर लेते लेकिन...
जाओ जी जाओ

ये प्यार-व्यार सब फुर्सत की बातें हैं
कभी फुर्सत मिली तो
जरूर सुनूँगी तुमसे
मेरे गाल पर तिल का क्या मतलब है?

 


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